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Paperback / softback

Description

जिनह लगता ह कि बाबासाहब आबडकर सामयवाद या मारकसवाद क खिलाफ थ वो भयानक परवागरह क शिकार ह। आबडकर का मारकसवाद क साथ बडा ही गढ रिशता था। उनहोन खद को समाजवादी कहा ह लकिन य भी सच ह कि वो मारकसवाद स गहर परभावित थ। हालाकि मारकसवादी सिदधातो को लकर उनह कई आपततिया थी लकिन दलितो क निहित सवारथो न आबडकर को कमयनिसटो क कटटर दशमन क रप म सथापित कर दिया और 'वरग' क जिस नजरिए स आबडकर इस समाज को दख रह थ, दलितो न उस नजरिए को परी तरह परतिबधित कर दिया। परतिकरियासवरप कमयनिसटो न भी आबडकर और उनक विचारो पर परहार करना शर कर दिया।1950 क दशक की शरआत म आबडकर न एक किताब पर काम करना शर किया। जिसका शीरषक वह भारत और सामयवाद रखना चाहत थ लकिन वह परी नही हो पाई। परसतत किताब उसी क बच हए हिससो का सकलन ह। उसक अलावा इसम उनकी एक और अधरी किताब कया म हिद हो सकता ह? का एक भाग भी सकलित किया गया ह। आनद तलतमबड न इस किताब की एक बहद परभावशाली और तीकषण परसतावना लिखी ह। य परसतावना सामयवाद क परति आबडकर क नजरिए को तो बताती ही ह साथ ही साथ आबडकर और कमयनिसटो क बीच हए विवादो और उन विवादो क ऐतिहासिक कारणो की पडताल भी करती ह। तलतमबड इस परसतावना म बतात ह कि आबडकरवादियो और सामयवादियो की आपसी एकता ही भारत क गरीबो और पीडितो को शोषणकारी शकतियो क चगल स आजाद कर पाएगी। आबडकरवादियो और सामयवादियो दोनो धडो क लिए यह एक बहद जररी किताब ह। आख खोल दन वाली किताब।

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