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Mohabbat Ka Jahanpanah, Paperback / softback Book

Mohabbat Ka Jahanpanah Paperback / softback

Paperback / softback

Description

महबबत का जहापनाह की गजल लीक स हट कर गजल ह। परम समरपण स भरपर। खददारी और आकरोश को भी समट दसरी ओर। इस उततर आधनिक यग क यतर ततर को भी धवनित करती हुई। गज़लें वास्तव में नई तासीर नए तेवर लिए हैं। उद्वेलित करती हैं। आंदोलित करती हैं। अंधकार से मुक़ाबला करती हैं। ये ग़ज़लें अधिक बोल्ड और सटीक हैं। दयानंद पांडेय ग़ज़ल लिखते समय, भावनाओें में बह कर शेर कहते हैं। उन की बहुत सी ग़ज़लें ग़ज़ल के उस परंपरागत स्वरूप को तोड़ती हैं जिस में विषय की दृष्टि से सभी शेर एकतरफ़ा न हो कर अलग-अलग भाव भूमि के हुआ करते हैं। दयानंद किसी एक ख़ास मूड में होते हैं तो उन की ग़ज़ल के सारे शेर उसी मूड और उसी विषय-विशेष की तर्जुमानी करते हैं। उदाहरण के लिए जब वह कहते हैं :बेटी का पिता होना आदमी को राजा बना देता है शादी खोजने निकलिए तो समाज बाजा बजा देता हैअपने सारे आंतरिक आवेगों और विचारों को कविवर दयानंद पांडेय अपनी ग़ज़लों के माध्यम से लक्षणा और व्यंजना जैसी चकमा देने वाली शब्द शक्तियों को बुहार कर, अनेक स्थलों पर ठेठ अभिधा में व्यक्त करते हैं । वह खुल कर अपनी बात कहते हैं । उन्हें शायद घुमा फिरा कर बात कहना न तो आता है और न ही पसंद है। अभिधा का कहर ढाना जैसे उन की फितरत है । वस्तुतः यह लेखक दयानंद पांडेय की शुरू से ही विशिष्टता रही है। अब इस ट्रेडमार्क को यदि उन्होंने अपनी काव्याभिव्यक्ति में भी अपना लिया है तो इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं । क्रिकेट की भाषा में कहें तो वह 'गुगली' या 'स्पिन' की जगह 'बाउंसर्स' में ही यक़ीन रखते हैं। हैरानी की बात यह अवश्य है कि जो बेबाकी उनकी लेखों में मिलती है, उन की ग़ज़लों में वह आग और उन की लपटें और भी कई गुना तेज़ हैं।

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