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Bharat Aur Uske Virodhabhas, Hardback Book

Bharat Aur Uske Virodhabhas Hardback

Hardback

Description

नबब क बाद भारतीय अरथवयवसथा न सकल घरल उतपाद म वदधि क लिहाज स अचछी परगति की ह। उपनिवशवादी शासन तल जो दश सदियो तक एक निमन आय अरथवयवसथा क रप म गतिरोध का शिकार बना रहा और आजादी क बाद भी कई दशको तक बहद धीमी रफतार स आग बढा, उसक लिए यह निशचित ही एक बडी उपलबधि ह।लकिन ऊची और टिकाऊ वदधि दर को हासिल करन म सफलता अनतत: इसी बात स आकी जाएगी कि इस आरथिक वदधि का लोगो क जीवन तथा उनकी सवाधीनताओ पर कया परभाव पडा ह। भारत आरथिक वदधि दर की सीढिया तजी स तो चढता गया ह लकिन जीवन-सतर क सामाजिक सकतको क पमान पर वह पिछड गया ह-यहा तक कि उन दशो क मकाबल भी जिनस वह आरथिक वदधि क मामल म आग बढा ह।दनिया म आरथिक वदधि क इतिहास म ऐस कछ ही उदाहरण मिलत ह कि कोई दश इतन लमब समय तक तज आरथिक वदधि करता रहा हो और मानव विकास क मामल म उसकी उपलबधिया इतनी सीमित रही हो। इस दखत हए भारत म आरथिक वदधि और सामाजिक परगति क बीच जो समबनध ह उसका गहरा विशलषण लमब अरस स अपकषित ह। यह पसतक बताती ह कि इन पारसपरिक समबनधो क बार म समझदारी का परभावी उपयोग किस तरह किया जा सकता ह। जीवन-सतर म सधार तथा उनकी बहतरी की दिशा म परगति और अनतत: आरथिक वदधि भी इसी पर निरभर ह।* 'शिषट और नियतरित... उतकषट... नवीन।' -रामचनदर गहा, फाइनशियल टाइमस * 'बहतरीन... दनिया क दो सबस अनभवी और बौदधिक परतयकषदरशियो की कलम स।' -विलियम डलरिमपल, नय सटटसमन * 'परोफसर अमरतय सन और जया दरज अपनी किताब स आपको सोचन पर मजबर कर दत ह... भारत क लिए सबस बडी चिनता की बात आज क समाज म बढती हई असमानताए होनी चाहिए।' -र

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