Gitanjali Book
by Ravindranath Taigore
Book
Description
गीताजलि'गीतांजलि' महानॠरचनाकार नोबल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° विजेता कवींदà¥à¤° रवींदà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर का पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ महाकावà¥à¤¯ है। à¤à¤• शताबà¥à¤¦à¥€ पूरà¥à¤µ जब इसकी रचना हà¥à¤ˆ, तब à¤à¥€ यह à¤à¤• महाकावà¥à¤¯ था और à¤à¤• शताबà¥à¤¦à¥€ के बाद à¤à¥€ यह महाकावà¥à¤¯ है तथा आनेवाली शताबà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ यह à¤à¤• महाकावà¥à¤¯ ही रहेगा। इस महाकावà¥à¤¯ की उपयà¥à¤•à¥â€à¤¤à¤¤à¤¾ तब तक रहेगी जब तक मानव सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ जीवित है।उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ सदी में विशà¥â€à¤µ साहितà¥à¤¯ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ की पहचान इस महाकावà¥à¤¯ के माधà¥à¤¯à¤® से हà¥à¤ˆà¥¤ यह महाकावà¥à¤¯ हर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ की अनà¥à¤à¥‚तियों से अंतरंग रूप से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ है। यह अपने आप में à¤à¤• अनूठा महाकावà¥à¤¯ है, जो साधारण वà¥à¤¯à¤•à¥â€à¤¤à¤¿ से लेकर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤‚ड विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥ के लिठसमान रूप से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾à¤¦à¤¾à¤¯à¥€ है। इस कावà¥à¤¯ की रचना न किसी विशेष समाज, पà¥à¤°à¤¾à¤‚त या देश विशेष के लिठहै। यह महाकावà¥à¤¯ मानव संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के लिठसदैव पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ का सà¥à¤°à¥‹à¤¤ रहेगा।किसी महाकावà¥à¤¯ का अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ दूसरी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में करना तथा उसी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में उसका शाबà¥à¤¦à¤¿à¤• अरà¥à¤¥ मातà¥à¤° करना काफी नहीं होता। अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ से पूरà¥à¤µ यह आवशà¥à¤¯à¤• है कि उस महाकावà¥à¤¯ में अंतरà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¤¿à¤¤ à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को समà¤à¤•à¤° समà¥à¤¯à¤•à¥ रूप में उसका मंथन किया जाà¤à¥¤ गीतांजलि, जिसका अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ विशà¥â€à¤µ की सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं à¤à¤µà¤‚ सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में हो चà¥à¤•à¤¾ है, à¤à¤¸à¥‡ महाकावà¥à¤¯ का फिर से अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ करने का साहस जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¤¾ अपने आप में अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¶à¤‚सनीय कारà¥à¤¯ है।
Information
-
Out of stock
- Format:Book
- Pages:122 pages
- Publisher:Prabhat Prakashan
- Publication Date:22/10/2009
- Category:
- ISBN:9789380186054
Information
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Out of stock
- Format:Book
- Pages:122 pages
- Publisher:Prabhat Prakashan
- Publication Date:22/10/2009
- Category:
- ISBN:9789380186054