Please note: In order to keep Hive up to date and provide users with the best features, we are no longer able to fully support Internet Explorer. The site is still available to you, however some sections of the site may appear broken. We would encourage you to move to a more modern browser like Firefox, Edge or Chrome in order to experience the site fully.

Bhashan Kala, Book Book

Bhashan Kala Book

Book

Description

जिस परकार धनष स निकला हआ बाण वापस नही आता, उसी परकार मह स निकली बात भी वापस नही आती, इसलिए हम कछ भी बोलन स पहल सोच-समझकर बोलना चाहिए।भाषण देना, व्याख्यान देना अपनी बात को कलात्मक और प्रभावशाली ढंग से कहने का तरीका है। इसमें अपने भावों को आत्मविश्‍वास के साथ नपे-तुले शब्दों में कहने की दक्षता प्राप्‍त कर व्यक्‍ति ओजस्वी वक्‍ता हो सकता है। हाथों को नचाकर, मुखमुद्रा बनाकर ऊँचे स्वर में अपनी बात कहना मात्र भाषण-कला नहीं है। भाषण ऐसा हो, जो श्रोता को सम्मोहित कर ले और वह पूरा भाषण सुने बिना सभा के बीच से उठे नहीं।यह पुस्तक सिखाती है कि वहीं तक बोलना जारी रखें, जहाँ तक सत्य का संचित कोष आपके पास है। धीर-गंभीर और मृदु वाक्य बोलना एक कला है, जो संस्कार और अभ्यास से स्वतः ही आती हैप्रस्तुत पुस्तक में वाक्-चातुर्य की परंपरा की छटा को नयनाभिराम बनाते हुए कुछ विलक्षण घटनाओं का भी समावेश किया गया है, जो कहने और सुनने के बीच एक मजबूत सेतु का काम करती हैं। विद्यार्थी, परीक्षार्थी, साक्षात्कार की तैयारी करनेवाले तथा श्रेष्‍ठ वाक्-कौशल प्राप्‍त करने के लिए एक पठनीय पुस्तक।

Information

£24.99

 
Free Home Delivery

on all orders

 
Pick up orders

from local bookshops

Information