Saki Ki Lokpriya Kahaniyan Paperback / softback
by Saki
Paperback / softback
Description
''या बात ह? या खोज रह हो तम यहा?'' अचानक नीद स जाग और अचà¤à¤¿à¤¤ वालडो न वन ताहन स पछा, जिस पहचानन म उस कछ समय लगना सवाà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• था।''à¤à¥‡à¤¡à¤¼ ढूà¤à¤¢à¤¼ रहा हूà¤à¥¤'' जवाब आया।''à¤à¥‡à¤¡à¤¼?'' वालà¥à¤¡à¥‹ चीख पड़ा।''हाà¤, à¤à¥‡à¤¡à¤¼à¥¤'' ''तà¥à¤® या समà¤à¤¤à¥‡ हो, मैं कोई जिराफ की खोज में आया हूà¤à¥¤''''मैं नहीं समà¤à¤¤à¤¾ कि दोनों में से कोई à¤à¥€ तà¥à¤®à¤•à¥‹ मेरे कमरे में यों मिलनेवाला है।'' वालà¥à¤¡à¥‹ ने गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ में पलटकर जवाब दिया।''रात के इस समय, मैं इस विषय पर बहस नहीं कर सकता।'' बरà¥à¤Ÿà¥€ ने कहा और वह जलà¥à¤¦à¥€à¤œà¤²à¥à¤¦à¥€ मेज की दराजों में हाथ डालकर खोजने लगा। कमीजें और कचà¥à¤›à¥‡ उड़उड़कर फरà¥à¤¶ पर गिरने लगे।''यहाठकोई à¤à¥‡à¤¡à¤¼ नहीं है, मैं तà¥à¤®à¤¸à¥‡ कहता हूà¤à¥¤'' वालà¥à¤¡à¥‹ चिलà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤''मैंने तà¥à¤®à¤•à¥‹ सिरà¥à¤« कहते सà¥à¤¨à¤¾ है।'' बरà¥à¤Ÿà¥€ ने बिसà¥à¤¤à¤° के अधिकतर कपड़े जमीन पर फेंकते हà¥à¤ कहा, ''अगर तà¥à¤® कà¥à¤› छिपा नहीं रहे होते तो तà¥à¤® इतने उोजित नहीं होते।''इस समय तक वालà¥à¤¡à¥‹ समठचà¥à¤•à¤¾ था कि वैन ताहà¥à¤¨ पागलों जैसा बरताव कर रहा है और फिर वह उससे ठिठोली करने लगा।-इसी संगà¥à¤°à¤¹ से--1--साकी के नाम से यात महानॠकहानीकार हैटर हà¥à¤¯à¥‚ग मà¥à¤¨à¤°à¥‹ ने समाज में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ सà¤à¥€ तरह की विसंगतियों, असमानताओं à¤à¤µà¤‚ मानवीय संबंधों के बीच के दà¥à¤µà¤‚दà¥à¤µ को अपनी कहानियों में उतारा है, जो रोचक तो हैं ही, पाठकीयरस से सराबोर हैं।
Information
-
Out of stock
- Format:Paperback / softback
- Pages:176 pages
- Publisher:Prabhat Prakashan
- Publication Date:01/12/2018
- Category:
- ISBN:9789352666584
Other Formats
- Hardback from £25.99
Information
-
Out of stock
- Format:Paperback / softback
- Pages:176 pages
- Publisher:Prabhat Prakashan
- Publication Date:01/12/2018
- Category:
- ISBN:9789352666584