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Karmayoga, Book Book

Karmayoga Book

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Description

करम शबद 'क' धात स निकला ह; 'क' धात का अरथ ह-करना। जो कछ किया जाता ह, वही करम ह। इस शबद का पारिभाषिक अरथ 'करमफल' भी होता ह। दारशनिक दषटि स यदि दखा जाए, तो इसका अरथ कभी-कभी व फल होत ह, जिनका कारण हमार परव करम रहत ह। परत करमयोग म करम शबद स हमारा मतलब कवल कारय ही ह। मानवजाति का चरम लकषय जञानलाभ ह। पराचय दरशनशासतर हमार सममख एकमातर यही लकषय रखता ह। मनषय का अतिम धयय सख नही वरन जञान ह; कयोकि सख और आनद का तो एक न एक दिन अत हो ही जाता ह। अतः यह मान लना कि सख ही चरम लकषय ह, मनषय की भारी भल ह। ससार म सब दःखो का मल यही ह कि मनषय अजञानवश यह समझ बठता ह कि सख ही उसका चरम लकषय ह।

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