Gyanyoga Book
by Swami Vivekanand
Book
Description
मानव-जाति क à¤à¤¾à¤—-निरमाण म जितनी शकतियो न योगदान दिया ह और द रही ह, उन सब म धरम क रप म परगट होनवाली शकति स अधिक महततवपरण कोई नही ह। सà¤à¥€ सामाजिक सगठनो क मल म कही-न-कही यही अदà¤à¤¤ शकति काम करती रही ह तथा अब तक मानवता की विविध इकाइयो को सगठित करनवाली सरवशरषठपररणा इसी शकति स परापत हई ह। हम सà¤à¥€ जानत ह कि धारमिक à¤à¤•à¤¤à¤¾ का सबध परायः जातिगत, जलवायगत तथा वशानगत à¤à¤•à¤¤à¤¾ क सबधो स à¤à¥€ दढतर सिदध होता ह।
Information
-
Out of stock
- Format:Book
- Pages:232 pages
- Publisher:Prabhat Prakashan
- Publication Date:12/08/2016
- Category:
- ISBN:9789384343057
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Out of stock
- Format:Book
- Pages:232 pages
- Publisher:Prabhat Prakashan
- Publication Date:12/08/2016
- Category:
- ISBN:9789384343057