Karmayoga Book
by Swami Vivekanand
Book
Description
करम शबद 'क' धात स निकला ह; 'क' धात का अरथ ह-करना। जो कछ किया जाता ह, वही करम ह। इस शबद का पारिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤• अरथ 'करमफल' à¤à¥€ होता ह। दारशनिक दषटि स यदि दखा जाà¤, तो इसका अरथ कà¤à¥€-कà¤à¥€ व फल होत ह, जिनका कारण हमार परव करम रहत ह। परत करमयोग म करम शबद स हमारा मतलब कवल कारय ही ह। मानवजाति का चरम लकषय जञानलाठह। पराचय दरशनशासतर हमार सममख à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¤° यही लकषय रखता ह। मनषय का अतिम धयय सख नही वरन जञान ह; कयोकि सख और आनद का तो à¤à¤• न à¤à¤• दिन अत हो ही जाता ह। अतः यह मान लना कि सख ही चरम लकषय ह, मनषय की à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤² ह। ससार म सब दःखो का मल यही ह कि मनषय अजञानवश यह समठबठता ह कि सख ही उसका चरम लकषय ह।
Information
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Out of stock
- Format:Book
- Pages:128 pages
- Publisher:Prabhat Prakashan
- Publication Date:22/10/2014
- Category:
- ISBN:9789384343019
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- Paperback / softback from £11.99
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- Pages:128 pages
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