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Parchhaiyan, Hardback Book

Parchhaiyan Hardback

Hardback

Description

इस सगरह म सममिलित रचनाओ म मानव जीवन क विविध पकष आए ह। यदयपि अधिकाश रचनाओ म परम जस उदातत और सारवभौमिक भाव क ही अनयानय पकष व रप परमखता स उभर ह, तथापि बहत स अनय सामानय भावो और परिसथितियो का निरपण करती रचनाए भी सममिलित ह।वस्तुतः अपने शीर्षक के अनुरूप जीवन में आनेवाली स्वाभाविक परिस्थितियों और मनोभावों की 'परछाइयाँ' ही इस संग्रह की प्रमुख विषय-वस्तु हैं। कहा जाता है कि रूप और सौंदर्य देखनेवाले की आँखों में होता है एवं देखनेवाले के पास यदि शब्द-शिल्प भी है तो यह शब्दों में उतर आता है, किंतु जब इस शिल्प को वह रूप और सौंदर्य का सागर स्वयं देखे तथा अब शांत हो चुके उस सागर में भी भावनाओं का ज्वार आ जाए तो कविताओं में प्रयुक्त बिंबों की प्रामाणिकता स्थापित होती है। पर यह होगा भी तो देखा नहीं जा सकेगा। हाँ, यह भी कल्पना की एक उड़ान तो है ही!यही इन कविताओं का सार तत्त्व है जो विभिन्न रचनाओं के माध्यम से बार-बार प्रतिध्वनित हुआ है, और अलग-अलग समय पर जीवन में जो भी हुआ है, उनकी 'परछाइयाँ' इन कविताओं में स्पष्ट देखी जा सकती हैं।

Information

  • Format:Hardback
  • Pages:88 pages
  • Publisher:Prabhat Prakashan
  • Publication Date:
  • Category:
  • ISBN:9789386054920
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  • Pages:88 pages
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  • ISBN:9789386054920